भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खाड़ हिमालय बोल रहल / रामनरेश वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खाड़ हिमालय बोल रहल, बोलल सागर जल खारा॥
संकट में मंदिर मस्जिद हे, गिरिजाघर गुरूद्वारा॥
भेद-भाव भूल हिन्दू, मुसलिम, सिख इसाई आवऽ
एक माय के सब बेटा समता सद्भाव बढ़ावऽ
फूट परस्ती पागलपन के, करके दूर किनारा॥
खाड़ हिमालय बोल रहल बोलल सागर जल खारा॥
बड़ी पवितर अउर पुराना ई धरती के माटी
सरगो से सुन्नर कहलायल $5 होय इया घाटी
मातृभूमि हे माय बराबर अउर प्रान से प्यारा॥
खाड़ हिमालय बोल रहल बोलल सागर जल खारा॥
उत्तर दक्खिन पुरब पच्छिम आउर बीच के बासी
मेहनत कस मजदूर किसान बुद्धिजीवी सन्यासी
दे रहलई सन्देस मिलन के गंग जमुन के धारा॥
खाड़ हिमालय बोल रहल बोलल सागर जल खारा॥
जात-धरम के चक्कर में मत अलगे बीन बजावऽ
देस हम्मर हमनी ही देस के एक्के सुर में गावऽ
फहरावऽ नभ सदा तिरंगा सबसे भाइचारा
खाड़ हिमालय बोल रहल बोलल सागर जल खारा॥