भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खिड़की के पास वाली सीट / प्रयाग शुक्ल
Kavita Kosh से
काउंटर पर
लड़की
करती हिसाब
सुनती फ़ोन--
चमकती ट्यूब लाइट में
पकड़ती है बस वह
शाम को ।
गिनता है समय
एक दिन,
उसके एक-एक सफ़ेद
और काले बाल ।
जन्म ले चुकी होती हैं
अनेक नई चिड़ियाँ
इस बीच--
जिन्हें कभी-कभी देखती है वह,
जब मिल जाती है
खिड़की के पास वाली सीट ।