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खिसक गयी है धूप / अज्ञेय
Kavita Kosh से
पैताने से धीरे-धीरे
खिसक गयी है धूप।
सिरहाने रखे हैं
पीले गुलाब।
क्या नहीं तुम्हें भी
दिखा इनका जोड़-
दर्द तुम में भी उभरा?