भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खींच लाया यहाँ दरिया हमको / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
खींच लाया यहाँ दरिया हमको
अब तो लहरों का सहारा हमको
ये अंधेरा तो छोड़ देता है
छोड़ता है कहाँ साया हमको
ये जमाने पे फैसला छोड़ा
क्यों कहें उसने सताया हमको
रो तो लें पहले ही हम जी भर के
अपना ढोना है जनाजा हमको
हम तमाशा थे देखने आये
सब समझते हैं तमाशा हमको
इतने निखरे हुए हैं ऐसे नहीं
मुद्दतों दुख ने तराशा हमको
जिसको 'अमरेन्द्र' सभी कहते हैं
वो दिखा साफ आवारा हमको।