खोज उसकी / शीतल साहू
मैं खोजता हुं उसे,
पहाड़ो की ऊँचाई में,
सागर की गहराई में।
जंगलो की तराई में,
और अपनी परछाई में।
खोजता हुं उसे,
अंतरिक्ष की विशालता में,
अणुओं की लघुता में।
फूलो की कोमलता मे
कांटो की कठोरता में।
बच्चो की चंचलता में,
और सयानो की जड़ता में।
ढूँढता हुं उसे,
खेतो की फसलों में,
मंदिर और देवालो में।
गरीबी की तंगहाली में,
अमीरी की खुशहाली में।
बड़े बड़े राजमहलो में,
घास फुस और मिट्टी के खपरैलो में।
मैं खोजता हुं उसे,
जगत के भीड़ में,
पेड़ो की डालो में, पंछियों के नीड़ में।
विज्ञान की अदम्य शक्ति में,
अध्यात्म की गहरी भक्ति में।
बुद्धि की तीक्ष्ण तर्कों में,
दिल के कोमल अर्को में।
ढूँढता हुं उसे,
प्रकृति की सुंदर सृष्टि में,
और मनीषियों की गहरी दृष्टि में।
हाँ, अभी तक हुं खोज रहा उसे,
नही रुकूँगा, जब तक पा ना सकूँ उसे,
जब तक ना जान सकूँ, ना समझ सकूँ उसे,
और चलती रहेगी मेरी खोज यात्रा,
जब तक अपना ना सकूँ उसे।