खोले अमलिन जिस दिन,
नयन विश्वजन के
दिखी भारती की छबि,
बिके लोग धन के।
तन की छुटा गई सुरत,
रुके चरण मायामत,
रोग-शोक-लोक, वितत
उठे नये रण के।
तटिनी के तीर खड़े
खम्भे थे, वीर बड़े,
मेरु के करार चढ़े,
श्रम के यौवन के।
खोले अमलिन जिस दिन,
नयन विश्वजन के
दिखी भारती की छबि,
बिके लोग धन के।
तन की छुटा गई सुरत,
रुके चरण मायामत,
रोग-शोक-लोक, वितत
उठे नये रण के।
तटिनी के तीर खड़े
खम्भे थे, वीर बड़े,
मेरु के करार चढ़े,
श्रम के यौवन के।