भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख खेलें / लोग ही चुनेंगे रंग
Kavita Kosh से
खराब ख
ख खुले
खेले राजा
खाएँ खाजा.
खराब ख
की खटिया खड़ी
खिटपिट हर ओर
खड़िया की चाक
खेमे रही बाँट.
खैर खैर
दिन खैर
शब खैर.