गँजन सुगुँज लग्यो तैसो पौन पुँज लग्यो ,
दोस मनि कुँज लग्यो गुँजन सोँ गजि कै ।
कहै पदमाकर न खोज लग्यो ख्यालनि को ,
सालन मनोज लग्यो बीर तीर सजि कै ।
सूखन सुबिँब लग्यो दूखन कदँब लग्यो ,
मोहि न बिलम्ब लग्यो आई गेह तजि कै ।
मीजन मयँक लग्यो मीतहू न अँक लग्यो ,
पँक लग्यो पायन कलँक लग्यो बजि कै ।
पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।