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गंग नहौन / गंग नहौन / निशाकर
Kavita Kosh से
अहल भोरे
भजन गबैत
गंगा घाट दिस जाइत
गंग नहौन सभकें बुझल नहि होइत छै
अपन गानक वेदना
गीतमे समाहित समुद्रक गहिराइ
ओकरा देखाइछ
मात्र गामक बाट
गामसँ गंगाक घाट।
ओ नपैत अछि
आ नुकाबऽ चाहैत अछि
अपन दुख
अपन वेदना
ठोर पर भजनक पाँति उतारि
बाबासँ पोता धरि
बाबीसँ पोती धरि
नानासँ नाति धरि
नानीसँ नातिन धरि
सासुसँ पुतौहु धरि
गंग नहौन।
मुदा
गंग नहौन सभक गीत सुननिहारक
घाओ
गहींर होइत जाइत अछि।