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गन्ध का प्रमाद / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
बरसों के बाद
यादों से जुड़ी एक याद
पिछड़े दिन तेज़ी से भागे
ठहर गए पलकों के आगे
छेड़ा जब चुलबुली हवा ने
गीत-सुमन सोते से जागे
टूट गया गन्ध का प्रमाद
बरसों के बाद
हम जितने डूबे अँसुआए
सारे दिन प्यास में नहाए
अँगड़ाई मधुवन्ती लहरें
फैल गए प्रतिबिम्बित साए
आज, लगा कल का अनुवाद
यादों से जुड़ी एक याद
बरसों के बाद