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गप्पी मलिकबा / मनीष कुमार गुंज
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गप्पी मलिकबा आबी गपियैतै
कत्ते ने काम छै के पतियैतै
नय होतै काम ते हमरा लतियैतै
हमरा हटाय के जात जतियैतै
ई सब के समझै छी करमोॅ के फेर
बनलका भी बिगड़ै में नै लागै देर
जेकरा नय लूर-जूत भरी मुं लेर
होकरा छै मुठ्ठी में भरलोॅ कुबेर
कमिया कमासूत सब धूनै कपार
पेटोॅ में खोर नय छुच्छे ढकार