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गरमी आई, गरमी आई / मधुसूदन साहा
Kavita Kosh से
गरमी आई, गरमी आई
रख दो कंबल और रज़ाई।
सूरज उठा खाट से जल्दी
दिन पहले से बड़ा हो गया,
सरदी से सिकुड़ा हर पौधा
फिर से तनकर खड़ा हो गया,
टहनी-टहनी पर फूलों ने
रंगों की बारात सजाई।
पेड़ों की ठंडी छाया में
चिड़िया जल्दी आकर दुबकी,
बच्चे पोखर के पानी में
लगे लगाने जी भर डुबकी,
दोपहरी के सन्नाटे में
बंसवट ने बाँसुरी बजाई।
कुल्फी वाले गली-गली में
लगे घूमने हाँक लगाते,
रोज सबेरे सब्जी वाले
ककड़ी-तरबूजे दे जाते,
चाय किसी को नहीं सुहाती
शरबत ने है धूम मचाई।
फिर से लौटे हैं दिन देखो
आम और लीची खाने के,
छुट्टी लेकर 'होमवर्क' से
नानी के घर को जाने के,
नाना जब बल्ल पकड़ेंगे
होगी सबकी खूब पिटाई।