गरहाँ क जीवाश्म / बुद्धिनाथ मिश्र
बाबू पढ़ने छलाह
अ सँ अदौड़ी
आ सँ आमिल
तैं न दौड़ि सकलाह
ने मिल सकलाह
सौराठक धवल-धार सँ।
जिनगी भरि करैत रहलाह पुरहिताइ
खाइत रहलाह चूड़ा-दही
बन्हैत रहलाह
भोजनी आ अगों क पोटरी
पूजावला अड.पोछा मे
हम पढ़लहुँ
अ सँ अनार
आ सँ आम
तहिया नहि बूझल छल
जे ई वर्णमाला पढ़िते
खास सँ आम भ जायब।
एहि देशक आरक्षित शब्दकोश मे
फूलक सहस्रो पर्याय अछि
मुदा फलक एकोटा नहि।
बून-बून सँ समुद्र
बनवाक प्रक्रिया मे
हम ओ भूतपूर्व बून छी
जेकरा समुद्र कहयबाक
अधिकार नहि छै।
आब हमर नेना
पढ़ि रहल छथि
ए सँ एपुल
बी सँ बैग,सी सँ कैट।
आ धीरे-धीरे
उतरि रहल अछि
हमरा दू बीतक फ्लैट मे
बाइबिलक आदम
आदम क ईव
आ ईवक वर्जित फल।
हमरा परदेस कें मात करत
बौआ क बिदेस।
हमर लगायल आमक गाछी
बाबुओ देखलनि,बौओ देखला
लेकिन बौआक लगायल सेब क गाछ
ओहि ईडन गार्डेन मे फरत
जतय नहि हेतै
आमक बास
नहि हेतै अदौड़ी क विन्यास।
लिबर्टी क ईव
पोति रहल अछि आस्ते-आस्ते
मधुबनी क भित्तिचित्र कें
देसी गुरूजी,
एक्काँ-दुक्काँ,सबैया-अढ़ैया
गरहाँ सभ जा रहल अछि भूगर्भ मे
जीवाश्म बनवाक लेल।
(03 नवम्बर 2007)