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गलफर में जहर / 1 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
एक रोज
आदमी जंगल गैले
वहाँ के सब्भे जानवर सें
दोस्ती के हाथ बढ़ैलकै;
सब जानवर नें
एक स्वर में कहलकै-
तोंय आदमी होय केॅ
आदमी के नै हुएॅ पारै छैं
तेॅ जानवर के की होइवैं!
अनुवाद:
एक दिन
आदमी जंगल गया
वहाँ के सारे जानवरों से
दोस्ती का हाथ बढ़ाया;
सभी जानवरों ने
एक स्वर में उससे कहा-
तुम आदमी होकर
जब आदमी का नहीं हो सकते
तो
हम जानवरों के कैसे होंगे!