भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गली-गली मेँ कपड़ा रोॅ दूकान सजैलोॅ / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
गली-गली मेँ कपड़ा रोॅ दूकान सजैलोॅ
सूती, नायलोन, सीफोॅम की सिनथैटिक सूतोॅ
की करतोॅ खादी मुकाबला, एकरा छूतोॅ
कोरिया-चीनी रेशम सेँ छै देश अघैलोॅ
तहियो जोॅर-जनानी केॅ कपड़ा रोॅ तंगी
बाँही खुललोॅ छाती खुललोॅ, टाँघो खुलला
एकरा सेँ अच्छा तेॅ बच्चा-बुतरू फुल्ला
अंगरेजी रोॅ चाल-चलन मेँ देशी नंगी
टोकला पर बोलै छै- ”ई तेॅ नारी-विरोधी
चाहै छै पुरुषें नारी केॅ गोती राखौं
स्वाधीनता रोॅ मजा जरौ नै हम्में चाखौं
रखलेॅ छै अब तक औरत रोॅ जिनगी सोधी“
के बतलावेॅ नारीवाद रोॅ पीछू की छै
टी.वी. सेँ मंचोॅ तक नंगापन के थै-थै।