गाँधी के लिए / अंजू शर्मा
सुनो राष्ट्रपिता,
जब भी खंगाला गया इतिहास 
निशाने पर थे तुम  
और संगीनों की नोक से मजलूमों के
सीने पर गुदता रहा 'अहिंसा',
मैंने देखा है तुम्हें बरस-दर-बरस
बदलते एक ऐसी दीवार में 
जहाँ  टंगे तुम्हारे चित्र पर 
अंकित किये जाते रहे गुणदोष,
हर एक दशक पर पर बदलती रही  
तुम्हारे संयम 
और दृढ-इच्छाशक्ति की उपाधियाँ
सनक, मनमानी और तानाशाही के 
कुत्सित आरोपों में 
और लोग लगाते रहे नारे 
'महात्मा गाँधी अमर रहें'
सुनो बापू, 
सत्य और संयम के सभी प्रयोगों के प्रेत 
हर बरस निकल आते हैं अपनी कब्रों से,
भटकते हैं, थूकते हैं उस दीवार पर, 
चिल्लाते हैं सेक्स, सेक्स और
खुद ही अपनी सड़ांध से बेहोश हो सो जाते हैं
बस एक साल के लिए, 
आज भी धरने, सत्याग्रह और असहयोग 
आधे-अधूरे आग्रह के साथ 
इस देश में कायम हैं बापू
आज भी तुम्हारा नाम पुकारा जाता है
'सविनय' 
लाचारी के रूपक से तौलते हुए 
तिर्यक रेखाओं से सुशोभित चेहरों द्वारा, 
'वैष्णव जन तो तेने कहिये' से  
नदारद जन दिग्भ्रमित हो 
चल पड़ा है उन मुखौटों के पीछे 
जो तुम्हारे हमशक्ल हैं,
तुम्हारी किताबों को खंगालते हुए 
आज भी महसूस होता है महात्मा कि
लोग क्यों कहते हैं 
मध्यम मार्ग के परहेजी के लिए दुष्कर है
कोई हल ढूंढना...
	
	