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गाँव-गिरांव / राम करन
Kavita Kosh से
नदी किनारे गाँव,
झुरमुट-झुरमुट छाँव।
कल-कल-कल-कल, टल-मल,
चह-चह-चह-चह हर ठाँव।
इधर लगे कभी नाव,
उधर लगे कभी नाव।
इसपार और उसपार,
महुआ-पीपल की छाँव।
झींगुर झीं-झीं झाँव,
ज्यों माँग रहा हो दाँव।
क्यों उड़ी टिटहरी ऊपर!
चल रख नीचे तू पाँव।
कौआ यदि कहता काँव,
आयेगा कोई गांव।
जब जब आते मेहमान,
खुश होता है गाँव-गिरांव।