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गाँव / दिनेश बाबा
Kavita Kosh से
आगिन बरसावेॅ लागलोॅ छै छाँव आबेॅ
कहाँ सुरक्षित रही गेलोॅ छै गाँव आबेॅ
भागी केॅ नगरोॅ सें ऐलौं जेकरा लेॅ
ओयन्हों कहाँ रही गेलोॅ छै नाँव आबेॅ
बड्डी शातिर होलै यहाँ के भोलापन
अजमावै छै तरह-तरह के दाँव आवेॅ
वैर भाव पनपलै यहाँ बेङ, छत्ता रङ
अपन्है में छै यहाँ बड़ी खाँव-खाँव आवेॅ
कुत्ता रङ लड़बोॅ, झपटवोॅ कौंआ रङ
आपन्है में छीना-झपटी, काँव-काँव आबेॅ
राजनीति के जहरीला माहौलोॅ में
बचलोॅ कहाँ छै प्रेम आरू सद्भाव आबेॅ
सब दिन मनुज तलाशलौ हम्में मानव में
तहिया सें बेसिए छै मजकि अभाव आबेॅ
सोच-विचार करी केॅ मन पुख्ता करलौ
ताकि नै उखड़ेॅ अंगद के पाँव आबेॅ
घूरी केॅ ‘बाबा’ नैं ऐहियोॅ नगरोॅ दिश
फनु सें एकठो यहीं बनाय लेॅ ठाँव आबेॅ।