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गाँव के बतकही / रमाकांत द्विवेदी 'रमता'
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गाँव-गाँव के लोग आज बस इहे बात बतिआवत बा
बीती दुख के समय, जमाना मन लायक आवत बा
उहे बनी मालिक जमीन के, जे हर-फार चलावत बा
अपना हाथे कुटी काटि के भोरे बैल खिलावत बा
उहे बनी मालिक मशीन के चक्का जवन चलावत बा
किसिम-किसिम के चीज बनाके कहाँ-कहाँ पहुँचावत बा
अब अइसन अन्हेर ना रही कि केहू खटते खटत मरी
केहू मुफुते बाबू बनि के शान बघारी-मउज करी
11.12.51
रचनाकाल : 11.12.1951