गाँव मेरा मशहूर नहीं है
तो क्या उसमें नूर नहीं है
साथ बुलन्दी देगी उसका
जब तक वो मग़रूर नहीं है
वो भी कोई घर है जिसमें
दुनिया का दस्तूर नहीं है
सरल नहीं है इसे समझना
थकता क्यों मज़दूर नहीं है
भूल जाइये बात पुरानी
औरत अब मजबूर नहीं है
ख़फ़ा रहो या ख़ुश तुम मुझको
ग़लत बात मंज़ूर नहीं है
मैं नाहक़ ही थका-थका हूँ
मंज़िल तो कुछ दूर नहीं है