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गाँव रोॅ गोरिया / मनोज कुमार ‘राही’
Kavita Kosh से
अरे होहो चलली जलपनवाँ लैकेॅ,
खेतवा के ओर गाँव रोॅ गोरिया,
माथें पेॅ जलपनवाँ, हथवा में पानी,
एक हाथ से खींचे बकरिया के टानी
ऊँचनीच, डेढ़मेढ़ गाँव के डगरिया,
ओकरा पेॅ पवनवाँ करै बलजोरिया,
रहीरही घुंघटा संभाली गोरिया,
हियाबेली पियवा की ओर गोरिया
अरे होहो
आज काहे रानी भइलौं तोहरा कुबेरा,
बितल जाय रामा जलपनवाँ के बेरा,
भुखवा से हमरोॅ निकलल परनवाँ,
कैसन दुलहनियाँ हमरोॅ फूटल करमवाँ
अरे होहो
अइलै न गोरिया, निहारूँ डगरिया,
पायल के रूनझुन सुनावेली गोरिया,
होलेहोले कदम बढ़ावेली गोरिया,
मिललै नयनवाँ चमकेला बिन्दिया
अरे होहो
आवोॅ सइयाँ करी लेॅ जलपनवाँ हो,
धड़केला धकधक हमरोॅ परनवाँ,
कि कहबौं घरवाँ में अइलोॅ छै पहुनवाँ,
रहीरही कानै छौं छोटका जे नुनवाँ
अरे होहो