गाँव से निकले बहुत लोग / गौरव पाण्डेय
१.
गाँव से निकले बहुत लोग
कुछ न कुछ करने
और लौटे भी
जो कुछ बन पड़ा वो करके
लौटे कुछ ईंटा-गारा करके
बोझा ढोकर लौटे कुछ
देर शाम तक
नमक-तेल-तरकारी लिए बहुत लौटे
कुछ ऐसे थे
जो लौटे बहुत दिनों बाद
बड़ा सा बैग, रुपया, कपड़ा और सपने लेकर
लेकिन कुछ ऐसे भी थे
जो नहीँ लौटे
खो गए
जो नहीं लौटे
उनमें अधिकतर ऐसे थे
जो कुछ हो गए
वे डाँक्टर, वे प्रोफेसर, वे वकील
वे पत्रकार, वे थानेदार
ये जहाँ गये वहीं के रह गये थे
इधर जिनके लौटने की उम्मीद
खो चुका था गाँव
वे मृतकों के बीच से उठकर लौटे...
२.
ये नायक
गाँव के बेटे थे
अब दामाद की तरह लौटते थे
गाँव बीमार था
डाँक्टर इलाज करने नहीं आया
और निरक्षर गाँव ने
प्रोफेसर से एक अक्षर नहीं पाया
वकील ने गाँव को नहीं दिया कोई न्याय
और पत्रकार क्या जाने गाँव का हाल-चाल
दरोगा ने रौब दिखाया गाँव को ही
जब कभी
दिया गया इन्हें कोई सम्मान
तब जरूर चर्चा में रहा गाँव का नाम...