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गांधी-मारग / कुंदन माली
Kavita Kosh से
जो
सत्ताइस बरसां सूं
गिद्ध री निजरां में
चुभतौ कांटो कैवाय है
जो
रंगभेद रा
समंदर में
लगोतार कांकरा
फेंकतो रैयो है
जो
ठेठ सूं ठेठ तक
औपनिवैषिकता रै
पीवणा सांप नै
पिटारी में
बंद करवा री खातिर
आपणा केस
पकाय बैठौ है
जो नुंवा रूंख माथै
बैठनै बराबरी रा
रसाल़ बांटणा
चावै है
जिणरी
अेक आवाज पै
दुनिया दौड़ी-दौड़ी
आवै है
कुण है वो
कुण
आजादी रौ उणियारो
उजालै़ री ओल़खाण
मिनख-धरम री पिछाण
पंचषील रौ कबूतर
के पछै
फकत नेल्सन मंडेला