भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गांव : दोय / दुष्यन्त जोशी
Kavita Kosh से
गांव में
वाटर वक्र्स है बण्योड़ौ
पण
पाणी आवै कदी-कदी
गांव में
बिजळीघर भी बणग्यौ
पण
बिजळी आवै कदी-कदी
गांव में
इस्कूल खुलग्यौ मोटो
पण
गुरुजी आवै कदी-कदी
गांव में
फोन रा घणां है टावर
पण
बातां हुवै कदी-कदी
गांव में
घर-घर है मजदूर
पण
काम आवै कदी-कदी
गांव में
ठेकौ खुल्लै रोज
लागै
लुगायां नै बोझ
गांव में
खुलगी कई दुकानां
जठै
सट्टौ लागै रोज
गांव नै
माड़ी पडग़ी बाण
ईंरौ
कद हुयसी कल्याण।