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गांव बने वियतनाम / गुलाब सिंह
Kavita Kosh से
सुबह-सुबह सिक्के-सा
दिन उछाल कर
लोग बाग परख रहे
आगामी कल।
लाठी संगीनों पर
झुक चौड़े सीनों पर
पंचों ने चुन लिए प्रधान,
उत्तर से दक्षिण तक
उग आईं दीवारें
वर्षों के लिए गाँव बने वियतनाम
बन्द हुई सुबह-शाम
आपस की राम-राम
परदेसी पूछें परिवार की कुशल।
लाखू की लतर चढ़ी
भीखू के छपरे पर
आँगन तक फैली चकरोड,
पन्ना पनवाड़ी के
घर-घर आतंक का कुरोग
सन्निपात में बकते
बाबा-पंचायत
होश पड़े कहें रामराज्य की मसल।
इस बरस चुनाव मुए
आल्हा का ब्याह हुए
गली-गाँव सोनवा के मण्डप,
लगती है बात-बात
छल फरेब की बरात
खुद गई गुनाहों की खन्दक,
घर-घर में भर गईं
सवालों की सौगातें
विदा हुई खुशियों की हर चहल-पहल।