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गाछ / नवीन ठाकुर ‘संधि’
Kavita Kosh से
एक, दू, तीन, चार, पाँच,
सब्भै लगावोॅ गाछ, बढ़ियां सें गाछ।
घोर आंगन आरो गली कुची,
आम, अमरूद, फलदार बीछी-बीछी।
साथैं लगाबोॅ साग सब्जी सीचीं सींची,
ओकरा राखियोॅ तोहें रिची-रिची।
लगाय छै सरकार सड़कोॅ में काछेॅ-काछ,
कदम, महोगनी, छतनार, सागवान,
छतनार बचाय छै नारी रोॅ जान।
शुद्ध हवा पानी पीयो सांझ-विहान,
कहियो नै घटतौं देहोॅ रोॅ शान।
भूलियोॅ नै "संधि" एक्कोॅ बात,
लीची लगैहोॅ नीमोॅ लगैहोॅ
वट, पीपल लगावै लेॅ नै भूलिहो।
कहुआ केॅ छाल रस पीवी,
अर्जुन नांकी वीर, बली बनी जैहोॅ।
गाछी सें बढ़ी दुनियां में केकरोॅ विसात।