भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गाता है प्रभु- 3 / राजेन्द्र जोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाँध रखा हैं
गंगा का रास्ता
कितनी तकलीफ
सहनी पड़ती हैं
कैसे वह
पहाड़ो पर चलती हैं !
अगर उसका रास्ता हो थार में
आसानी से चल सकेगी वह
नये लोग जुड़ेगें
नये दोस्त बनेगें
नया जमाना बनेगा
आश्रितों की
संख्या बढ़ेगी
प्रभु !
तू सच कहता हैं
मानता भी हूँ
कण - कण में हूँ मैं
क्यों बुलाता है
सबको
इतनी दूर
क्यों नहीं
चला जाता हैं
उनके पास !