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गिरि मौन, धरित्री मौन, मौन नभ अनुपम मौन सुमन-श्वाँसे / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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गिरि मौन, धरित्री मौन, मौन नभ अनुपम मौन सुमन-श्वाँसे।
चल रहा अनकहा सृष्टि-चक्र शाश्वत प्रेरित हरि-इच्छा से।
नीरव ही ढुलक अमोलक आँसू करता मृदु कपोल क्षालन।
कितना शीतल कितना सुरभित बतला न कभीं पाता चन्दन।
है प्राण! निहारा अनुरागी नयनों का नीरव अभिनन्दन।
होता है मोहक प्राणनाथ! अनबोले अधरों का चुम्बन।
सब जान जान भी चीख रही बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥109॥