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गिलहरी / योगेन्द्र दत्त शर्मा
Kavita Kosh से
आह गिलहरी! वाह गिलहरी!
चुन ले अपनी राह, गिलहरी!
ऊपर चढ़ती कभी उतरती,
तू मीठे फल-फूल कुतरती,
हरदम चौकन्नी रहती है
तेरी चपल निगाह, गिलहरी!
कभी सड़क पर, कभी पेड़ पर,
कभी खेत में कभी मेंड पर।
पा लेना बेहद मुश्किल है,
तेरे मन की थाह, गिलहरी!
पल में दिखती पल में गायब,
लुका-छिपी है तेरा करतब,
तुझे बुलाता रहता मैं, पर
तुझे नहीं परवाह, गिलहरी!
लगातार तू मेहनत करती,
पल, दो पल भी नहीं ठहरती,
मुझे अचंभे से भर देता,
तेरा यह उत्साह, गिलहरी!
तीन धारियाँ बनीं पीठ पर,
प्यारी, न्यारी बेहद सुदर,
छिपती, दिखती आती-जाती,
देती किसे सलाह, गिलहरी!
मेहनत करती दौड़-दौड़कर,
खा जाती अखरोट तोड़कर,
पर, अब मेरी बात मान ले,
कर ले जल्दी ब्याह, गिलहरी!