भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली अरण्यकांड पद 16 से 20 तक/पृष्ठ 1

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(16)

मेरो सुनियो, तात सँदेसो |
सीय-हरन जनि कहेहु पितासों, ह्वैहै अधिक अँदेसो ||

रावरे पुन्यप्रताप-अनल महँ अलप दिननि रिपु दहिहैं |
कुलसमेत सुरसभा दसानन समाचार सब कहिहैं ||

सुनि प्रभु-बचन, राखि उर मुरति, चरन-कमल सिर नाई |
चल्यो नभ सुनत राम-कल-कीरति, अरु निज भाग बड़ाई ||

पितु-ज्यों गीध-क्रिया करि रघुपति अपने धाम पठायो |
ऐसो प्रभु बिसारि ,तुलसी सठ तू चाहत सुख पायो ||