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गीतावली उत्तरकाण्ड पद 11 से 20 तक/ पृष्ठ 3

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राग केदारा

सुमिरत श्रीरघुबीरजीकी बाहैं |
रोत सुगम भव-उदधि अगम अति, कोउ लाँघत, कोउ उतरत थाहैं ||

सुन्दर-स्याम-सरीर-सैलतें धँसि जनु जुग जमुना अवगाहैं |
अमित अमल जल-बल परिपूरन, जनु जनमी सिँगार सविता हैं ||

धारैं बान, कूल धनु, भूषन जलचर, भँवर सुभग सब घाहैं |
बिलसति बीचि बिजय-बिरदावलि, कर-सरोज सोहत सुषमा हैं ||

सकल-भुवन-मङ्गल-मन्दिरके द्वार बिसाल सुहाई साहैं |
जे पूजी कौसिक-मख ऋषियनि, जनक-गनप, सङ्कर-गिरिजा हैं ||

भवधनु दलि जानकी बिबाही, भए बिहाल नृपाल त्रपा हैं |
परसुपानि जिन्ह किये महामुनि जे चितए कबहू न कृपा हैं ||

जातुधान-तिय जानि बियोगिनि दुखई सीय सुनाइ कुचाहैं |
जिन्ह रिपु मारि सुरारि-नारि तेइ सीस उघारि दिवाई धाहैं ||

दसमुख-बिबस तिलोक लोकपति बिकल बिनाए नाक चना हैं |
सुबस बसे गावत जिन्हके जस अमर-नाग-नर सुमुखि सना हैं ||

जे भुज बेद-पुरान, सेष-सुक-सारद सहित सनेह सराहैं |
कलपलताहुकी कलपलता बर, कामदुहहुकी कामदुहा हैं ||

सरनागत-आरत-प्रनतनिको दै दै अभयपद ओर निबाहैं |
करि आईं, करिहैं, करती हैं तुलसिदास दासनिपर छाहैं ||