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अयोध्याकी रमणीयता
(वर्षा-वर्णन 1)
राग सूहो
कोसलपुरी सुहावनी लरि सरजूके तीर |
भूपावली-मुकुटमनि नृपति जहाँ रघुबीर ||
पुर-नर-नारि चतुर अति, धरमनिपुन, रत-नीति |
सहज सुभाय सकल उर श्रीरघुबर-पद-प्रीति ||
श्रीरामपद-जलजात सबके प्रीति अबिरल पावनी |
जो चहत सुक-सनकादि, सम्भु-बिरञ्चि, मुनि-मन-भावनी ||
सबहीके सुन्दर मन्दिराजिर, राउ-रङ्क न लखि परै |
नाकेस-दुरलभ भोग लोग करहिं, न मन बिषयनि हरै ||