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गीतावली पद 81 से 90 तक/ पृष्ठ 10

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जबहिं सब नृपति निरास भए |
गुरुपद-कमल बन्दि रघुपति तब चाप-समीप गए ||

स्याम-तामरस-दाम-बरन बपु, उर-भुज-नयन बिसाल |
पीत बसन कटि, कलित कण्ठ सुन्दर सिन्धुर-मनिपाल ||

कल कुण्डल, पल्लव प्रसून सिर चारु चौतनी लाल |
कोटि-मदन-छबि-सदन बदन-बिधु, तिलक मनोहर भाल ||

रुप अनूप बिलोकत सादर पुरजन राजसमाज |
लषन कह्यो थिर होहु धरनिधरु, धरनि, धरनिधर आज ||

कमठ, कोल, दिग-दन्ति सकल अँग सजग करहु प्रभु-काज |
चहत चपरि सिव-चाप चढ़ावन दसरथको जुबराज ||

गहि करतल, मुनि-पुलक सहित, कौतुकहि, उठाइ लियो |
नृपगन-मुखनि समेत नमित करि सजि सुख सबहि जियो ||

आकरष्यो सिय-मन समेत हरि, हरष्यो जनक-हियो |
भञ्ज्यो भृगुपति-गरब सहित, तिहुँ लोक-बिमोह कियो ||

भयो कठिन कोदण्ड-कोलाहल प्रलय-पयोद समान |
चौङ्के सिव, बिरञ्चि, दिसिनायक, रहे मूँदि कर कान ||

सावधान ह्वै चढ़े बिमाननि चले बजाइ निसान |
उमगि चल्यौ आनन्द नगर, नभ जयधुनि, मङ्गलगान ||

बिप्र-बचन सुनि सुखी सुआसिनि चलीं जानकिहि ल्याइ |
कुँवर निरखि, जयमाल मेलि उर कुँवरि रही सकुचाइ ||

बरषहिं सुमन, असीसहिं सुर-मुनि, प्रेम न हृदय समाइ |
सीय-रामकी सुन्दरतापर तुलसिदास बलि जाइ ||