भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतिका / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रेरणाएँ जगाती रही गीतिका।
आत्मबल को बढती रही गीतिका॥

हर्ष के गीत हरपल सुनाती रही।
मन सभी का लुभाती रही गीतिका।

चुन सुमन शब्द छवि को सजाती रही
हर समय मुस्कराती रही गीतिका।

देखकर सभ्यता संस्कृति का पतन-
आँसुओं में नहाती रही गीतिका।

छनद लिखती मिलन के विरह के कभी-
चँादनी ही सजाती रही गीतिका।

नित्य करती मुखर भावनाएँ मधुर-
कीर्ति उज्ज्वल लुटाती रही गीतिका।

साधना मौन करती रही आजतक,
शान्ति-' सन्देश लाती रही गीतिका।