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गीत / अश्विनी
Kavita Kosh से
साँझ सबेरे बाट जोहै छी
उठी-उठी करौं बिहान गे!
छच्छे खटिया काटै लेॅ दौड़े,
यै जिनगी के निनान गे!
कास फुलैलै धानॅ फुटलै,
फगुआ बितलै, आसो टुटलै,
भरबाभूत-जुआनी कानै,
लै-लै ओकरॅ नाम गे!
धरती रोज सिंगार करै छै,
सरंगोनी बरसै, आग लगै छै
गामॅ दुआरी में हुनके चरचा
सुनी-सुनी सालै छै प्राण गे!