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गीत में बस व्यथा रह गई / राहुल शिवाय
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गीतमें हर खुशी बन तुम्हीं थे बसे
तुम गए गीत में बस व्यथा रह गई
कौन तुम बिन प्रिये! अश्रुओं से कहे
मत बहो, मत बहो, होंठ से चूमकर
कौन अपना कहे, ले गले से लगा
कौन बातें करे स्वयं को भूलकर
वह छुवन, वह लगन, बात अब वह नहीं
साथ मेरे विरह की प्रथा रह गई
अब विधुर स्वप्न है, प्यास ही प्यास है
न कोई हास है, व्यर्थ श्रृंगार है
रट वही है, धूनी है वही प्रेम की
फर्क बस है यही, साथ अंगार है
मैं अधूरा रहा, तुम अधूरे रहे
औ' अधूरी हमारी कथा रह गई
जी रहा हूँ तुम्हें मान कर जिन्दगी
पर चुका जा रहा श्वाँस का स्नेह अब
व्यर्थ ही यह रहेगी प्रतीक्षा प्रिये!
मानता है मगर यह हृदय बात कब
भूल कर तुम गए प्यार के हर वचन
पर तुम्हारे लिए आसथा रह गई
रचनाकाल- 11 मई 2017