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गीत लिखे हैं / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

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मैंने भी कुछ गीत लिखे हैं

संभव है कुछ पंकिल भी हों

पर कुछ परम पुनीत लिखे हैं !


भाव कभी अपने तो कभी पराये लेकर

मैंने जीवन को रोया है, गाया भी है

कभी वसंत भर गया है फूलों से झोली

पतझर ने हर पत्ता कभी सुखाया भी है

कुछ भविष्य, कुछ वर्तमान, कुछ भोगे हुए अतीत लिखे हैं !

मैंने भी कुछ गीत लिखे हैं !!


जब भी आँख उठाकर इधर उधर देखा है

मुझको कभी लगा कि यहाँ सब कुछ मेरा है

और कभी अपने आँगन में रात बिताकर

प्रात लगा यह तो बंजारों का डेरा है

मानस के पृष्ठों पर शत्रु अधिक, थोडे से मीत लिखे हैं !

मैंने भी कुछ गीत लिखे हैं !!


कभी-कभी तो पर्वत से भी टकराया हूँ

और कभी पोखर ने मुझ को डरा दिया है

कभी एक जुगनू ने मुझको हरा दिया है

कुछ उछाल करके चुनौतियाँ, कुछ होकर भयभीत लिखे हैं !

मैंने भी कुछ गीत लिखे हैं !!


कभी तुम्हारे सुख-दुख को लय छंद दिये हैं

और कभी गीतों में अपने को ढाला है

कभी सुधा की थोड़ी-सी बूँदों की खातिर

सागर का सारा विष मैंने पी डाला है

उगली है कुछ आग, और कुछ होकर बहुत विनीत लिखें हैं !

सारा विष मैंने पी डाला है