हे कालदास
हे चिर सुन्दर, हे चिर नवीन!
जीवन-मंगल स्रष्टा प्रवीण!
मधुमय उदात्त वाङ्मय-विधान
शाश्वत सुदिव्य सन्देश पान
अन्तर का सौरभ लिए छन्द
देते प्राणों को गति अमन्द
तेरे कर में वह करामात
बन गया कुटज भी पारिजात
हो गया सुलभ सुरभित सुवर्ण
सुनकर कृतार्थ हो जायँ कर्ण
मानवता के परिणत विकास
भारत की संस्कृति के हे समास
हे कालिदास!
-म.प्र. सन्देश, 1965