भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुड़िया / बाजार में स्त्री / वीरेंद्र गोयल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारा प्यार
हर चीज से है प्यारा
तुम्हारी हँसी और शरारतें हैं न्यारी
पैदा हुई तुम
एक वणिक के घर
साधारण रंग-रूप ले
एक उदासी-सी
घिर आयी थी मन में
पर अब वो उदासी ढल गई है
तुम्हारी हँसी मुझे छल गई है
तुम्हारा तुतलाना
और खिलखिलाना है अनमोल
लानत है मेरे मुँह से
कभी निकले थे ऐसे बोल
तुम्हारा प्यार है प्यारा
मुझे हर चीज से।