भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुड्डी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
मेरे नाना के घर में,
कल रात घुसे थे चोर।
खट-खट की आवाज़ सुनी तो,
छोटी गुड्डी जागी।
बिना किए ही देर फटाफट,
उसने शैया त्यागी।
कान लगाए धीरे से,
आवाज सुनी जिस ओर।
धीरे-धीरे गई वहाँ पर,
बंद किया दरवाजा।
बोली आज बजा दूंगी मैं,
इन चोरों का बाजा।
उसके हाथ आ चुकी थी
इन सब चोरों की डोर।
शोर मचाया जोरों से,
घर, पूरा पड़ोसी जागे।
पकड़े गए बंद कमरे से,
सारे चोर अभागे।
चर्चे होते हैं घर-घर अब,
गुड्डी के चहुंओर।
ऐसे वीर बहादुर बच्चों,
को आगे लाना है।
इनके साहस के यह किस्से,
सबको बतलाना है।
जानें इनको बच्चा-बच्चा,
जानें चांद-चकोर।