भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुड्डी लोरी / श्रीधर पाठक
Kavita Kosh से
सो जा, मेरी गोद में ऐ प्यारी गुड़िया,
सो जा, गाऊँ गीत मैं वैसा ही बढ़िया।
जैसा गाती है हवा, जब बच्ची चिड़िया।
जैसा गाती है हवा, जब बच्ची चिड़िया,
जाँय पेड़ की गोद में सोने की बिरियाँ।
क्योंकि हवा भी तान से गाना है गाती,
मीठे सुर से साँझ को धुन मंद सुनाती।
और उस सुंदर देश का, संदेश बताती,
जहाँ सब बच्चे-बच्चियाँ सोते में जाती।
-प्रका.: बाल सखा, जुलाई 1918, 1919