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गुनता हूँ / अरविन्द चतुर्वेद
Kavita Kosh से
मैं गुनता हूँ
तुम गिनते हो
मैं बुनता हूँ
तुम बीनते हो
मैं छूता हूँ
तुम छीनते हो
तुम्हारे गिनने, बीनने-छीनने में
मारा जाता है सच
छा जाता है चौतरफ़ा झूठ
कितना होता है उजाड़
कितने होते हैं अनाथ
सूख जाती है हरियाली
हर तरफ़ ठूँठ ही ठूँठ
मैं गुनता हूँ।