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गुरुत्वाकर्षण / रुचि बहुगुणा उनियाल

धरती अपनी धुरी पर घूमती हुई
हर बार अपने उस कोने की ओर झुक जाती है
जिस कोने में रहते हैं हम-तुम
जितनी बार तुम चूम लेते हो मेरे माथे का सूरज
उतनी बार धरती पर गुरुत्वाकर्षण का बल
अपनी नियत नियमावली के विरूद्ध हो जाता है
तुम्हारे एक चुम्बन का भार
धरती पर मौजूद हज़ारों दुःखों के
भार का महत्व शून्य करने को पर्याप्त है।