भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुलाबों का दरिया / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिए हम

गुलाबों का दरिया,

महकता-मचलता लिये हम ।


बनाए वसंती-नवेली को अपना,

हृदय से लगाए,

हवा के सुरीले स्वरों में समाए,

सितारों की आंखों से

हम मुस्कराए,


जिए हम

गुलाबों का दरिया,

महकता-मचलता लिए हम ।


('पंख और पतवार' नामक कविता-संग्रह से )