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गुल्लू और आँधी-पानी / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
गुल्लू मन ही मन घबराया
कल आया जब आँधी पानी
आज सबेरे
गुल्लू के
मुँह से, यह हमने सुनी कहानी
उठे अचानक
बादल गरजे
रंग हो गया उनका काला
सूरज ने बादल को ओढ़ा
और छुप गया कहीं उजाला
पत्ते, धूल
साथ में लेकर
हवा चल रही थी मनमानी
साँय-साँय की
आवाज़ें थीं
पत्ते टूटे डाली टूटीं
रखी धूप में थीं अम्मा ने
छत पर सारी गगरी फूटीं
धड़क रहा था
दिल गुल्लू का
याद आ गईं उसको नानी
भड़-भड़
करते थे दरवाज़े
और झमाझम बादल बरसा
सूखी धरती को बादल ने
गुस्सा कम कर पानी परसा
गुज़री रात
बहुत डर-डर कर
मगर हुई फिर सुबह सुहानी
आज सबेरे
गुल्लू के
मुँह से, यह हमने सुनी कहानी।