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गूँज उठे 'मेघगीत' / राहुल शिवाय
Kavita Kosh से
यायावर मेघों ने
डाल कर पड़ाव
प्रकट किये धरती से
प्रेम भरे भाव
खेलती शतरंज दिखी
धूप और छाँव
थिरक उठे ताल-छंद,
बूँदों के पाँव
ऊसर को सौंधी के
मिले कई पत्र
गूँज उठे 'मेघगीत'
आज यत्र-तत्र
बरसाती नदियों में
उतर रही नाव
धान धन्य-धन्य हुआ,
मचल पड़ी दूब
अधरों की प्यास मिटी,
दूर हुई ऊब
परती ने तोड़ दिया
ग्रीष्म से करार
शीतलता लिए
आ गई नयी बयार
दूर हुए धरती-
आकाश के दुराव