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गृहस्थी और प्रेम / पल्लवी मिश्रा
Kavita Kosh से
क्या गृहस्थी का आधार प्रेम है?
नहीं-नहीं
प्रेम में तो होती नहीं कोई दूरी-
जीवनभर साथ निभाने की
रहती नहीं है मजबूरी-
पति और पत्नी तो
गृहस्थी की गाड़ी के दो पहिए हैं
जिनके बीच
एक नियत फासला है जरूरी-
यदि वे अधिक निकट आएँगे
तो गृहस्थी की गाड़ी डगमगा जाएगी-
किसी दीवार या दरख्त से
जा टकराएगी-
फिर परिवार का क्या होगा?
घरबार का क्या होगा?
जिन्होंने भी इस फासले को
पाटने की कोशिश की है
घरबार नहीं सजा पाए,
परिवार नहीं बसा पाए;
जैसे-
लैला-मजनूँ,
रोमियो-जूलियट
शीरीं-फरियाद,
हैं कुछ ऐसे ही नाम
जो किए जाते हैं सदियों से याद
अपनी अलौकिक प्रेमकहानी के लिए-
उत्कट चाहत और कुर्बानी के लिए-
फिर भी
उनके घर कहाँ थे?
बच्चों की किलकारियों से गूँजते
दीवार-ओ-दर कहाँ थे?