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गेहूँ का थैला / सत्यनारायण सोनी
Kavita Kosh से
आँगन में
दीवार के सहारे
भरा पड़ा
खड़ा है
गेहूँ का थैला
कहते जिसे हम
अपनी भाषा में-
पीसणा ।
बड़े ही जतन से
पत्नी ने जिसे
छाज में छटक-फटक
किया साफ़
बीन दिया
कंकर-कचरा सारा
उड़ा दी खेह-खपरिया
हवा के संग ।
अब जाएगा
आटा-चक्की तक
बड़ी ही शान से
सवार हो
मेरे मोढ़े<ref>कंधे</ref> पर ।
शब्दार्थ
<references/>