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गैलो करसो / कन्हैया लाल सेठिया

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अड़वै पर कविता लिखै
गैलो ऊटपटांग,
गोधा बड़ग्या खेत में
मे’ल कलम लै डांग,
टपरी स्यूं नीचै उतर
कसलै काठी लांग,
हाकै स्यूं कोनी डरै
भाज पायचा टांग,
खोदी खाई साव तू
चौड़ी तीन बिलांग
कोनी सोची बड़ सकै
छयाळी मा’र छलाग,
तू करसो कवि बणण रो
क्यां न रचियो सांग ?
कलम नहीं हळ स्यूं जुड़या
गो, गीता, बेदांग !