भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ग्रन्थकार परिचय / प्रेम प्रगास / धरनीदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चौपाई:-

हरिजन सेवक जहं कर वासा। नाम ठाम गुन करहिं प्रकाशा।
मध्यदेश माँझी असथाना। सुरपुर सम सरयू सनिधाना।।
चारिहुं और सघन अमराईं। ताल तडाग कहों कितनाई।।
तहं तहं पुहुप-वाटिका लाऊ। वापि कूप तंह बहुत बंधाऊ।।
देव स्थल वहु देखिय ताहां। हरिको चर्चा निशिदिन जाहां।।

विश्राम:-

वस्तु कहां लगि वरनिय ँ, जँह लेगि हाट विकाहि।
एक दिवस जिन देखिया, जन्म न विसरै ताहि।।4।।

चौपाई:-

श्रीवास्तव श्रीपति के दासा। करहिं सहित परिवार निवासा।।
‘टिकयितदास’ तहां तप-आगर। कायथ-कुल महिमा अतिसागर।।
‘परशुराम’ सुत तिन कहं भयऊ। सुयशबेलि जिन वसुधा कमऊ।।
विष्णु-उपासक अति सुर ज्ञानी। निर्मल यश चहुं दिशा बखानी।।
पत्नी तासु ‘वीरमा’ माई। पुरविल करनी बहुत कमाई।।
दयाधर्म दृढ़ दूनो प्रानी।
पांच पुत्र विधि तिनकंह दयऊ। पंचन मांह उजागर कियऊ।।
तिनके नाम कहत हों जानी।

विश्राम:-

लछीराम ओ ‘क्षत्रपति’, धरनी बेनी राम।
‘कुलमनि’ सहितो पांच जन, साधु संघति विश्राम।।5।।

चौपाई:-

धरनी के मन अनुभव भयऊ। प्रेम प्रकाश कथा एक ठयऊ।।
सहजहिं जिय उपजो अनुरागा। सोवत हुतो चिंहुकि जनु जागा।।
उत्पति कहों कथा कछु आगे। भक्ति भाव अभि-अंतर लागे।।
सर्गुनिया सर्गुन लौ लावै। निर्गुनिया निर्गुनहिं सुनावै।।
संबत सत्रहसौ चलि गयऊ। तेरह अधिक ताहि पर भयऊ।।
शाहजहाँ छोड़ी दुनियाई। पसरी औरंगजेब दुहाई।।
सोच विचारि आत्मा जागी। धरनी धरौ भेस वैरागी।।

विश्राम:-

पूष पंचमी शुकुल पछ, पूष नक्षत्र गुरुवार।
तेहि दिन कथा आरंभ भौ, मेंहसी नगर मंझार।।6।।

सौरठ.:-

तिया पुरुष कौ भाव, आतम बढ़ औ परमात्मा।
बिछुरे होत मेराव, धनि प्रसंग धरनी कहत।।

श्लोक:-

ज्ञानध्यानोद्भवे जीवः कुमारः पुरुषः परः।।
सार्थवाहो गुरुः साज्ञात्मनः सारीति विस्तरः।।

चौपाई:-

कुंअर पुरुष परमातम जानी। वरनों कुंअरि आतमा रानी।।
गुरु-परसाद ज्ञान कछु पाया। ताते मन विलोकि गुन गाया।।
जाको मन जहंवा लगि धावै। आखर अरथ तहांलौ लावै।।
धरनी कोई न करनी योगा। जस प्रभु करै कहै तस लोगा।।
जिन प्रभु रची सकल दुनियाई। तिनकी कीनौं कथा बनाई।।

विश्राम:-

कर्ता वक्ता सूनता, घट घट आपै आप।
धरनी शरनी ताहिको, जाके माय न बाप।।7।।